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हमारी सोच ही हमें ऊपर उठाती है, तथा हमारी सोच ही हमें नीचे गिराती है

हमारी सोच ही हमें ऊपर उठाती है, तथा हमारी सोच ही हमें नीचे गिराती है” हमारी सोच की दिशा सही है,तो हम शिखर पर पहुंचेंगे, और सोच की दिशा ही गलत है,तो शिखर पर पहुंच कर भी रसातल में पहुंच जाऐंगे”

हमारी सोच ही हमें ऊपर उठाती है, तथा हमारी सोच ही हमें नीचे गिराती है” हमारी सोच की दिशा सही है,तो हम शिखर पर पहुंचेंगे, और सोच की दिशा ही गलत है,तो शिखर पर पहुंच कर भी रसातल में पहुंच जाऐंगे” उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज ने तुलसीनगर दि.जैन मंदिर इंदौर में रविवारीय धर्मसभा को सम्वोधित करते हुये व्यक्त किये
राजेश जैन दद्दू
मुनि श्री ने कहा कि सोच के परिणाम से नर से नारायण वना जा सकता है वंही नर से नारकी भी बन कर यह मनुष्य जीवन को नष्ट भी कर सकते हो। उन्होंने चार प्रकार की सोच पर चर्चा करते हुये कहा कि प्रत्येक व्यक्ती की सोच भौतिक, व्यव्साईक, व्यवहारिक तथा आध्यात्मिक सोच हुआ करती है। जिनकी सोच “खाओ पिओ मौज करो,कर्जा लो और घी पिओ” की होती है ऐसे लोगों को ज्यादा उपदेश दैने की आवश्यकता नहीं,ऐसे लोग दृश्य जीवन के अलावा और कुछ देखते नहीं उनकी सोच सारी जिंदगी भोतिक संसाधनों को एकत्रित करने तथा “पदार्थ जन्य भोगों “तथा मौज मस्ती में ही पूरा जीवन खपा देते है,उन्होंने कहा कि भौतिक सुखों की प्राप्ति में सुख नहीं वल्कि यह मृगतृष्णा मात्र है जैसे रेगिस्तान जल की खोज करते करते वह मृग भटक कर अपने प्राण गंवा देता है उसी प्रकार भौतिक संसाधनों को इकट्ठा करते करते यह मानव पर्याय नष्ट हो जाती है। संत कहते है कि रेत से तेल निकालना फिर भी संभव है लेकिन भौतिक संसाधनों से सुख की खोज करनाअंतहीन दौड़ है,इसमें केवल भागम्भाग और आपाधापी है भटकाव है, ठहराव विल्कुल नहीं,उन्होंने कहा कि भौतिक सुखों का आलंबन उतना ही लो जितना आवश्यक है मुनि श्री ने कहा जब से पश्चिमी सभ्यता हमारे ऊपर हांवी हुई है तबसे लोगों की सोच व्यवसाइक हो गयी है वह घर परिवार में भी नफा नुकसान देखने लगा है,यदि पुत्र पिता में पिता पुत्र में भाई भाई में पति पत्नी में पत्नी पति में समाज में सम्वंधों में यदि आप नफा नुकसान को देखोगे तो आप अपनी व्यव्हारिकता को खो दोगे उन्होंने तीसरी सोच का व्यक्ति जो मात्र अपनी छवि अपने स्टेटस को मेंनटेन करने में लगा रहता है ऐसे लोग व्यवहारिक स्तर पर तो ठीक होते है लेकिन उनका अंतरंग भी ठीक हो वह जरुरी नहीं वह अपनी यश प्रतिष्ठा को बनाने का तो प्रयास करता है लेकिन वह अपनी आध्यात्मिक सोच को विकसित नहीं कर पाऐ यह जरूरी नही, जिनकी सोच आध्यात्मिक होती है वह बाहर के साथ साथ अपनी आत्मा के उन्नयन की ओर भी देखता है मुनि श्री ने कहा कि जो लोग समाज में अग्रणीय है यदि वह अच्छा कार्य करते है तो सभी लोग उनके मुरीद हो जाते है।उन्होंने धनाढ्य लोगों की आपेक्षा मध्यमवर्गीय लोगों की तारीफ करते हुये कहा कि धर्म के क्षेत्र में मध्यमवर्गीय लोगों का योगदान अच्छा रहता है।
उन्होंने कहा कि आजकल कुछ लोग अपने आपको मार्डन जैन कहते है ऐसे लोग दान के बलपर समाज के मुखिया भी बन जाते है संतों के साथ भी रहते है लेकिन आचरण के नाम पर जीरो है उनको शराब पीने तथा अंडा आदि खाने से भी कोई गुरहोज नही होता है मुनि श्री ने कहा अच्छा बनो साथसाथ अपने अंदर भेद विज्ञान को जाग्रत कर आत्मतत्व को भी जगाऐं। इस अवसर पर मुनि श्री निर्वेगसागर महाराज एवं संधान सागर महाराज सहित समस्त क्षुल्लक गण विराजमान थे। कार्यक्रम का संचालन नितिन भैया ने किया धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू धर्मप्रभावना समिति के प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया प्रातःप्रवचन 9 बजे से एवं सांयकालीन शंकासमाधान 5:45 से प्रतिदिन हो रहा है। इस अवसर पर महालक्षमी नगर सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हो रहे है।

स्रोत- जैन गजट, 23 दिसंबर, 2024 पर:- https://jaingazette.com/hamari-soch-hi-hume-upar-uthati-hai/

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