”गुरु के बचनों को मात्र सुनें ही नहीं उसको गुनना आवश्यक है”
उपरोक्त उदगार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री निर्वेगसागर महाराज ने तुलसीनगर मेंप्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये*
उदगार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री निर्वेगसागर महाराज ने तुलसीनगर मेंप्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किये*धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि
मुनि श्री ने कहा कि संसार के सभी विषय सुख पाप के बीज है यह दुःख को दैने बाले है प्रतिदिन आपको बड़े महाराज जीवन को सुखी बनाने के लिये सम्वोधन दे रहे है और वहूत ज्यादा ज्ञान आपको विभिन्न चैनलों के माध्यम से परोसा जा रहा है मुनि श्री ने कहा कि “ज्ञान” दैने बालों की कमी नहीं है ज्ञान तो बहूत मिल रहा है लेकिन वह चारित्र में नहीं उतर रहा है,तो वही ज्ञान सिरदर्द बनता जा रहा है।
मुनि श्री ने कहा कि पहले पड़े लिखे लोग कम थे लेकिन ज्ञान के महत्व को समझते थे लेकिन आजकल बच्चों को बचपन से ही ऐसी शिक्षा दी जाती है कि वह रट्टू तोता बन जाते है जो कुछ भी अध्यन किया है उसका महत्व ही नहीं समझते और वह ज्ञान उनके आचरण मैं नहीं उतरता अतःप्रारंभ से ही बच्चों के अंदर संस्कार दिये जाऐं तो वह एक कर्तव्य निष्ट नागरिक बन सकते है।मुनि श्री ने कहा कि आध्यात्म के क्षेत्र का एक उदाहरण देते हुये कहा कि शिवभूति मुनि थे उनके ज्ञान का क्षयोपशम इतना कमजोर था कि उनको णमोकार महामंत्र भी ठीक से याद नहीं होता था उनको गुरु ने शरीर और आत्मा के भेद को समझाया तो वह बात उनको समझ में नहीं आई लेकिन वही बात एक दिन एक मां उड़द की दाल को धो रही थीअचानक शिवभूति मुनिराज उधर से निकलना हुआ उन्होंने पूंछा मां आप क्या कर रही हो? तो मां ने जबाब दिया”तुष मास भिन्नम” तुष यानि उड़द मास यानि छिलका को दाल से अलग कर रही हूं। शिवभूति मुनि को जो बात उनके गुरु ने बताई थी वह बात उनको समझ में आ गयी”तुष मास भिन्नम” शव्द शिवभूति मुनिराज ने सुना तो उनको गुरुमहाराज के शव्द याद आ गये और वह समझ गये कि यह शरीर अलग है,और आत्मा अलग है और वह शरीर की सेवा छोड़ आत्मा में लीन हो गये तथा उनको केवलज्ञान हो गया मुनि श्री ने कहा कि “ज्ञान” यदि थोड़ा भी है यदि वह आचरण में उतर जाऐ तो उसका कल्याण हो सकता है और यदि ज्ञान बहूत है लेकिन आचरण नहीं है तो ऐसा ज्ञान कोई काम का नहीं होता उन्होंने कहा कि आजकल के पढ़ीलिखी जनरेशन एक तो विवाह में देर करती है उसके पश्चात संतान को जन्म दैना बोझ समझते है तथा सही बक्त पर संतान का जन्म नहीं होंने से पड़े लिखे लोगों के पास ज्यादा विकल्प हो जाते है मुनि श्री ने कहा कि विवाहोउपरांत आपका कर्तव्य है कि सही समय पर संतान को जन्म दें एक मां नौ माह की उस पीड़ा को भी सहज में झेलती है जिससे उस परिवार की परंपरा चल सके, मुनि श्री ने कहा कि धर्म की परंपरा तभी आगे बड़ेगी जब आप योग्यसंतान को सही समय पर जन्म देंगे
इस अवसर पर मुनि श्री संधान सागर महाराज ने कहा कि प्रारंभ से ही बच्चों को संस्कार शिक्षा दी जाये,तो बच्चे बुड़ापे में उनका सहारा बनेंगे संस्कारों के लिये आप लोग अपने बच्चों को पाठशाला में अवश्य भेजिये जिससे वह धर्म को समझ सकें। कार्यक्रम का संचालन नितिन भैया ने किया। धर्म प्रभावना समिति के प्रवक्ता अविनाश जैन एवं समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज संघ सहित तुलसीनगर में विराजमान है एवं प्रतिदिन प्रातः 9 बजे से मुनिसंघ के प्रवचन एवं सांयकालीन शंकासमाधान 5:45 से संपन्न हो रहा है। रविवारीय प्रवचनतुलसीनगर में ही होंगे। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू एवं धर्मप्रभावना समिति एवं मुनिसुव्रतनाथ जिनालय तुलसीनगर के समस्त पदाधिकारिओं ने साधर्मी बंधुओं से समय पर सभी कार्यक्रम में पधारने की अपील की है।
स्रोत- जैन गजट, 22 दिसंबर, 2024 पर:- https://jaingazette.com/guru-k-bachno-ko-matra-sune-hi/
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James martin
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