18 दिसंबर 1971 को मध्य प्रदेश के भिंड जिले के ग्राम रूर में जन्मे *राजेंद्र ने मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में ही जगत के राग रंग से वैराग्य लेकर गृह त्याग कर
दिया था और गणाचार्य विराग सागरजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की थी
18 दिसंबर 1971 को मध्य प्रदेश के भिंड जिले के ग्राम रूर में जन्मे *राजेंद्र ने मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में ही जगत के राग रंग से वैराग्य लेकर गृह त्याग कर
दिया था और गणाचार्य विराग सागरजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की थी जो आज वीतरागता से विभूषित अध्यात्म रत्नाकर आचार्य विशुद्ध सागर जी के नाम से देश भर में सु विख्यात एवं बहुआदरित एवं अद्भुत और अनूठे संत हैं और अपनी आगम अनुकूल चर्या और ज्ञान से नमोस्तु शासन को जयवंत कर रहे हैं।
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी वर्तमान काल में अपने ज्ञान, अपनी आगम अनुकूल विशुद्ध चर्या और आगम सम्मत पीयूष वर्षिणी विशुद्ध वाणी के प्रभाव से अध्यात्म सरोवर के राजहंस एवं आध्यात्म रत्नाकर धरती के देवता सिद्ध हो चुके हैं और श्रमण संस्कृति
के श्रेष्ठ और गौरवमयी संतों की श्रंखला में चर्या शिरोमणि, आध्यात्मिक योगी आचार्य विशुद्ध सागर जी के रूप में स्थापित हैं
इस पंचम काल में अनेक जैन मुनि, आचार्य एवं उनके संघ साधना रत हैं और हर संघ की अपनी चर्या है लेकिन वर्तमान में उनकी चर्या एवं कृतीत्व में बीसवीं सदी का प्रभाव भी
घुसपैठ करता दिखाई देता है लेकिन आचार्य विशुद्बसागर जी एवं उनके द्वारा दीक्षित 56 मुनियों का संघ इसका अपवाद है! उनकी चर्या में सिर्फ और सिर्फ आगम की झलक दिखाई देती है और शिथिलाचार का कोई स्थान नहीं है। देश में कहीं भी उनके नाम से कोई प्रोजेक्ट भी नहीं है इसलिए वह न धन संग्रह (चंदा) करते हैं ना करवाते हैं, यही वजह है कि आज उनकी चर्या श्रावकों के लिए आदर्श एवं श्रमणों के लिए अनुकरणीय बन गई है।
आचार्य श्री का जितना विशद व्यक्तित्व है उससे अधिक उनका कृतीत्व
है देश के 12 राज्यों में 100000 किलोमीटर से अधिक पदत्राण विहीन चरणों से पग बिहार करते हुए धर्म और अध्यात्म में पगी अपनी पियूष वर्षिणी देशना के माध्यम से जगत कल्याणी जिनेंद्र की
वाणी को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। मध्य प्रदेश ,राजस्थान और उत्तर प्रदेश शासन द्वारा इन राज्यों में आपके बिहार के दौरान आपको राजकीय अतिथि का सम्मान प्रदान किया गया है। आपके सानिध्य में अभी तक 145 से अधिक जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं का संपन्न होना एक ऐसी उपलब्धि है जो आपकी अरिहंत भक्ति का अभिज्ञान कराती है। इस उपलब्धि को यूएसए बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी अंकित किया गया है।
आपके द्वारा अभी तक 56 मुनि दीक्षाएं एवं 9 क्षुल्लक दीक्षाएं भी प्रदान की जा चुकी है सभी दीक्षार्थी उच्च शिक्षित युवा है। आपने अभी तक 200 से अधिक कृतियों का सृजन किया है जिनका देश दुनिया में सबसे ज्यादा स्वाध्याय किया जा रहा है आपके द्वारा रचित कृति वस्तुत्व महाकाव्य एवं कैसर से रचित कृति कर्म विपाक का उल्लेख गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड मे भी अंकित है। ब्रिटिश नेशनल यूनिवर्सिटी आफ क्वीनमेरी अमेरिका द्वारा आपको डी लिट की मानद उपाधि प्रदान भी की गई है।
आपके दीक्षा गुरु समाधिष्ट गणाचार्य विराग सागर जी महाराज द्वारा अपनी समाधि के पूर्व दिनांक 3 जुलाई 2024 को आपको अपना पट्टाचार्य पद देने की घोषणा की गई। पट्टाचार्य पद समारोह 500 मुनियों की सन्निधि एवं लाखों लोगों की उपस्थिति में आगामी अप्रैल माह में इंदौर के नवोदित तीर्थ सुमति धाम में सम्पन्न होगा। पट्टाचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के अवतरण दिवस पर उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन
नमोस्तु शासन जयवंत हो
स्रोत- जैन गजट, 18 दिसंबर, 2024 पर:- https://jaingazette.com/adhyatmak-ratnakar-rur-k-shoor-aacharya-vishudh-sagar/
Copyright © 2024 All Rights Reserved
2 Comments
James martin
ReplyLorem ipsum dolor sit amet, cibo mundi ea duo, vim exerci phaedrum. There are many variations of passages of Lorem Ipsum available but the majority.
James martin
ReplyLorem ipsum dolor sit amet, cibo mundi ea duo, vim exerci phaedrum. There are many variations of passages of Lorem Ipsum available but the majority.