अर्हम योग प्रणेता मुनि प्रणम्य सागर महाराज स संघ के पावन सानिध्य में दो दिवसीय द्वितीय राष्ट्रीय इतिहास संगोष्ठी हुई सम्पन्न
” प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन धर्म” विषय पर विद्वानों ने पढे आलेख –
महावीर भगवान के निर्वाण के 683 वर्ष बाद हुई लेखन प्रक्रिया चालू
अर्हं ध्यान योग प्रणेता मुनि प्रणम्य सागर महाराज ससंघ के पावन सानिध्य में मीरा मार्ग के आदिनाथ भवन पर आयोजित द्वि दिवसीय द्वितीय राष्ट्रीय इतिहास संगोष्ठी ” प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन धर्म” का रविवार को समापन हुआ । इसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए विद्वानों ने 50 से ज्यादा उपविषयो पर अपने आलेख पढ़े, कार्यक्रम में श्री आदिनाथ दिगंबर जैन समिति मीरा मार्ग के अध्यक्ष सुशील पहाड़िया एवं मंत्री राजेन्द्र सेठी ने बताया कि द्वि दिवसीय द्वितीय राष्ट्रीय इतिहास संगोष्ठी “प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन धर्म” में दूसरे दिन रविवार को सुबह के सत्र में कृष्ण जुगनू ने विभिन्न विषयों पर जैन शास्त्रों के बारे में बताया, वही अविनाश ने कमलदह मंदिर पटना के बारे में बताते हुए वहां की व्यवस्था के बारे में प्रसन्न चिन्ह लगाया और हो रहे भेदभाव पर ध्यान दिलवाया।
हेमंत दबे ने गुजरात में जैन धर्म की प्राचीनता पर विवाद और विद्वता पर आलेख पढ़ा।मुनि श्री ने बताया कि गिरनार वो जगह जहां आचार्य धरसेन महाराज ने तपस्या की। वो गुफा आज भी धरसेन गुफा के नाम से जानी जाती है।महावीर भगवान के निर्वाण के 683 वर्ष बाद यह लेखन की प्रक्रिया चालू हुई।मुनि श्री ने कहा आप विद्वान लोग देख ले कि गुजरात में जैन धर्म कितना पुराना है।मुनि श्री ने कहा योग और ध्यान के माध्यम से हम सारनाथ, राजगृही इत्यादि जगह पर जैनत्व को पहुंचा सकते हैं ।गोष्ठी के अंत में सभी विद्वतजनों का सम्मान किया गया,समिति के अध्यक्ष सुशील पहाड़िया, कोषाध्यक्ष लोकेंद्र पाटनी, सदस्य अशोक छाबड़ा ने माला एवं दुपट्टा पहनाकर सम्मान किया। स्मृति चिन्ह संगोष्ठी के संयोजक डॉ. रंजना जैन जबलपुर एवं डॉक्टर सत्येंद्र जैन ने प्रदान किया।
स्रोत- जैन गजट, 11 नवंबर, 2024 पर:- https://jaingazette.com/mahavir-bhajgwan-k-nirvan-k-683-varsh-bad-hui/
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James martin
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