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25 साधुओं ने मिलकर आचार्य विशुद्ध सागर महाराज जी द्वारा प्रवर्तित विचित्र बातों के प्रणेता मुनि श्री सर्वार्थ सागर महाराज जी का सिर मुंडवा दिया

नादणी चर्या शिरोमणी आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी के आदर्श शिष्य विचित्र बाते प्रणेता मुनी श्री सर्वार्थ सागर जी हैं | नांदणी में विराजमान परम पूज्य आध्यात्मयोगी, दिगंबर आचार्य गुरुदेव श्री विशुद्धसागर जी महाराज ससंघ में एक अद्भुत सा दृश्य देखने को मिला |

नादणी चर्या शिरोमणी आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी के आदर्श शिष्य विचित्र बाते प्रणेता मुनी श्री सर्वार्थ सागर जी हैं | नांदणी में विराजमान परम पूज्य आध्यात्मयोगी, दिगंबर आचार्य गुरुदेव श्री विशुद्धसागर जी महाराज ससंघ में एक अद्भुत सा दृश्य देखने को मिला |
जहाँ आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज सहित संघ के २५ साधु ने मिलकर नांदणी , महाराष्ट्र में गुरुदेव मुनिश्री सर्वार्थ सागर जी महाराज का केशलोंच किया। यह एक अनोखा सा दृश्य हम
सभी को देखने को मिला | धन्य है मुनियों का समागम और गुरु भाइयो का आपसी वात्सल्य |
युवाओं के प्रेरणा पुंज, धरती के ऐसे देवता जो तन से विशुद्ध, मन से विशुद्ध, चर्या से विशुद्ध और चर्चा से विशुद्ध ऐसे वितराग आचार्य भगवन विशुद्ध सागरजी महाराज है l आचार्य विशुद्धसागरजी महाराज ये एक ऐसे संत है जिनकी आध्यात्म की गेहराई से सत्यार्थ का बोध होता है l ये ये एक ऐसे संत है जिनके चरणो में शीतलता मिलती है l जिनकी एक मुस्कुराहट से सारी थकान मीट जाती है l ये ऐसे संत है जिनके रोम रोम में णमोकार मंत्र की मेहक है l
आज श्रमण मुनी श्री सर्वार्थ सागर महाराज जी के केशलोंच पर आइए जानते हैं उनके जीवन की कुछ खास बातें……

मुनि श्री सर्वार्थ सागर जी-
आज से 33 वर्ष पूर्व वसंत की बहार में एक भावी संत का जन्म हुआ था,जिसको पाकर परिजन ही नही नगर का जन जन मुस्कुराया था और वह वसुधा थी पन्ना नगर के समीप बसे ग्राम सलेहा (म. प्र ) की। सौभाग्य शाली दंपत्ति श्रीमान प्रमोद जी जैन एवं श्रीमति सुशीला जी जैन के आंगन में फिर एक बार खुशियां छाई थी |
1 फरबरी 1991 को जब तीसरी संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी, और उस सुंदर बालक का माता पिता ने नाम रखा अर्पित , भला उस समय कौन जानता था कि एक दिन अर्पित जिनशासन को समर्पित हो जाएगा, बड़े भाई और बड़ी बहिन का लाडला प्यारा छोटा भाई अर्पित बाल्यकाल से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का धनी था | घर के सभी काम अग्रणी होकर जो करते थे, चारों भाई बहन के खेल कूद हल चल से घर का वातावरण खुशियों से भरा रहता था |
यूं तो बालक अर्पित मंदिर जाता था लेकिन ज्यादा विशेष रुचि नहीं रहती थी, यूं ही समय बीतता गया और अर्पित के पिताश्री ने पढ़ाई के साथ धार्मिक संस्कारों से जुड़े रहें इसलिए ग्रेजुएशन करने खुरुई गुरुकुल में भेज दिया जहां से बीएस सी की लौकिक शिक्षा ग्रहण की और बड़े ही अच्छे से मित्र मंडली के मस्ती मजाक करते कॉलेज की पढ़ाई की |
पुनः घर आकर जो अपने पिता का व्यवसाय में सहयोग बड़े ही जिम्मेदारी से करने लगे लेकिन काल तो कुछ और सोच रहा था… पुण्योदय से सलेहा (म. प्र )नगर जो प्रख्यात तीर्थ श्रेयांश गिरी सीरा पहाड़ की तलहटी भी कहलाता है | जहां विराजित है चतुर्थ कालीन श्री आदिनाथ भगवान जिनकी ऊर्जामई आभा जन जन के लिए मंगलकारी है |
ऐसे तीर्थ राज पर गुरुओं का आगमन होता ही रहता था | और एक बार वहाँ पधारे आचार्य भगवन श्री विशुद्ध सागर जी महाराज | जिनकी वात्सल्य मई छवि और उनकी वाणी सुनकर धर्म की ओर मन मुड़ गया | युवा बालक अर्पित धर्म पथ का अनुकरण करने लगे | पहले जो कोई ज्यादा मंदिर आदि में रुचि नहीं रखता था अब वह बदल गया | शुभ योग से मुनि विनिस्चल सागर जी महाराज का चातुर्मास कराने का सौभाग्य सलेहा नगर को मिला और महाराज के नगर में होने से अर्पित की लगन और मजबूत होती चली गई और फल स्वरूप मुनि श्री की पुरानी पिच्छिका भी प्राप्त हो गई |
फिर कुछ दिन का विहार कराने जो मुनिराज के साथ चल दिए और मुनि संघ पहुंचता है टीकमगढ़ | जहां एक माह की ग्रंथ राज रत्नकरण्डक श्रावकाचार की वाचना हुई और अर्पित भाई ने गाथाओं को कंठस्थ किया | तभी वीरभूमि राजस्थान में विशाल युग प्रतिक्रमण का आयोजन हो रहा था जहां आचार्य विराग सागर जी महाराज सहित 250 पिच्छी विराजमान थी | अर्पित भाई भी अपने परिवार के साथ दर्शन करने पहुंचे और भावना रखी मुझे आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के संघ में प्रवेश लेना है |
पिता श्री बात को मान गए और आंसू बहाते आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज से कह दिया आज से यह बालक आपका है | अब आप संभालो और फिर शुरू हो गई एक अद्भुत यात्रा जो एक दिन मोक्ष महल पर पहुंचाएगी |
गुरु के प्रति अनन्य भक्ति से ओत प्रोत भाई अर्पित शुरू से ही सेवा भावी रहे और अध्यन भी अत्यंत गहराई से करते थे |आचार्य संघ विहार करते मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचा जहां लालघाटी जैन नगर में नेमीनाथ भगवान के समक्ष 12 जुलाई 2014 को बालक अर्पित ने ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया | और बालब्रह्मचारी अर्पित से जाने जाने लगे | शांत सरल बालक की धार्मिक लगन और दिगंबरत्व की भावना से बहुत जल्दी फलीभूत हुई और सन 2015 के भीलवाड़ा (राजस्थान) चातुर्मास में 29 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन गुरु कृपा वर्षी और वस्त्रों की नगरी में ही वस्त्रों का त्याग करके मुनि पद को प्राप्त किया |
गुरु ने आपका नाम रखा श्रमण मुनि सर्वार्थ सागर महामुनिराज | तब से आप अपने महाव्रतों की साधना में तल्लीन रहे | साथ ही गुरु देव की ही सानिध्य में महान महान ग्रंथों का अध्यन भी कर रहे | सरल शांत सौम्य मूर्ति पूज्य मुनि श्री सर्वार्थ सागर जी सदैव जिनधर्म की प्रभावना में तत्पर रहते है | साथ ही वैयवृत्ती में भी अग्रणी रहते हैं |
आपकी विचित्र बातें अत्यंत लोकप्रिय है | जो सबको मंत्रमुग्ध कर देती हैं | साथ ही आपकी प्रवचन शैली भी ओजस्वी है | जो छोटे छोटे सूत्रों के माध्यम से सबको उत्थान का मार्ग देती है | आपकी प्रेरणा से विचित्र बातें आज जैन धर्म की अभूतपूर्व प्रभावना सोशल मीडिया के माध्यम से कर रहा है | जिससे जैन ही नहीं जैनेतर भी अत्यंत प्रभावित है |
अपने गुरु के साथ आप दीक्षा से लेकर अभी तक लगभग 50 हजार किलोमीटर का विहार कर चुके हैं | ऐसे मोक्ष पथ अनुगामी जिन धर्म का सारांश अबाल वृद्ध को बताने वाले विलक्षण चिंतक मुनि श्री सर्वार्थ सागर महाराज जी के पावन चरणों में कोटि कोटि नमोस्तु |

स्रोत- जैन गजट, 1 नवंबर, 2024 पर:- https://jaingazette.com/aacharya-vishudh-sagar-maharaj/

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