हर घर, हर आंगन
*राष्ट्रीय स्वर्णिम जैन ध्वज उत्सव: मनाएं ।
भरत का भारत सबसे पावन। पंचरंगी ध्वज फेरे हर आंगन।।
हर घर, हर आंगन
*राष्ट्रीय स्वर्णिम जैन ध्वज उत्सव: मनाएं ।
भरत का भारत सबसे पावन। पंचरंगी ध्वज फेरे हर आंगन।।
मेरे प्रिय समंग्र जैन समाज परिजन इस दीपावली पर्व पर हम इतिहास के उस
स्वर्णिम पल का साक्षी बनेंगे जब जैन ध्वज की 50 वीं वर्षगांठ का महामहोत्सव राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाएगा। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने कहा कि जहां एक तरफ़ भगवान महावीर स्वामी का 2550वाँ निर्वाण महोत्सव सारा विश्व अहिंसा वर्ष के रूप में मना रहा है । वहीं जिनशासन का यशगान जैन ध्वज फहरा कर 50 वीं वर्षगांठ मनाएंगे।
यह पंचरंगी ध्वज पंच परमेष्ठि एवं पांच व्रत जो अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य के आदर्शों का प्रतीक है, हर घर, हर आंगन में लहराएगा।
यह न केवल हमारे गौरवशाली जैन धर्म का प्रतीक है, बल्कि एक संदेश है—करुणा, शांति, और समभाव का, जिसे हर व्यक्ति के जीवन में आत्मसात करना आवश्यक है। यह दिंगबर और श्वेतांबर दोनों जैन सम्प्रदाय एक स्वर में इसे स्वीकार करते हैं। समाधीष्ट राष्ट्रसन्त आचार्य विद्यानंद जी गुरूदेव की दूरगामी सोच से यह आज से 50 वर्ष पूर्व जैन ध्वज का निर्माण हुआ था।
आज, जब पूरी दुनिया संघर्ष और अशांति से जूझ रही है, यह पंचरंगी ध्वज हमें एक नई दिशा दिखाने के लिए तैयार है। इस ध्वज को लहराने से केवल हमारे घरों में ही नहीं, बल्कि हमारे दिलों में भी बदलाव की लहर दौड़ेगी।
भरत का भारत— अहिंसा और धर्म की धरोहर को पुनः जागृत करें। जिओ और जीने दो। इस पंचरंगी ध्वज के माध्यम से हम दुनिया को दिखाएं कि जैन धर्म के सिद्धांत केवल आदर्श नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने का श्रेष्ठ मार्ग हैं।
इस दिवाली, आइए समंग्र जैन–समाज के हर घर आंगन, हर घर हर गली में जैन ध्वज फहराकर प्रेम, एकता, शांति की मिशाल प्रज्ज्वलित करें ।
१. फहराते समय प्राचीन जैन ध्वज गीत गाए —
आदि ऋषभ के पुत्र भरत का भारत देश महान । ऋषभ देव से महावीर तक करे सुमंगल गान ॥
पंचरंग पाँचों परमेष्ठी ,
युग को दे आशीष ।
विश्वशांति के लिए झुकाये
पावन ध्वज को शीश ।
जिन की ध्वनी जैन की संस्कृति जग जग को वरदान
आदि ऋषभ के पुत्र भरत का भारत देश महान ।
ऋषभ देव से महावीर तक करे सुमंगल गान ॥
स्रोत- जैन गजट, 22 अक्टूबर, 2024 पर:- https://jaingazette.com/jain-dhvaj-ki-50-vi-varshganth/
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2 Comments
James martin
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