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दीये से जीवन जीने की सीख

दीपावली पर्व संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है
यह पर्व आत्मविश्वास और ज्ञानप्रकाश का उत्तम अनुष्ठान है।यह पर्व किसी संप्रदाय विशेष का पर्व नहीं है। यह तो समस्त विश्व का पर्व है। भारतीय संस्कृति में इसे मंगलमय ज्योति पर्व के रूप में मनाने की परंपरा अति प्राचीन है ।

दीपावली पर्व संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है
यह पर्व आत्मविश्वास और ज्ञानप्रकाश का उत्तम अनुष्ठान है।यह पर्व किसी संप्रदाय विशेष का पर्व नहीं है। यह तो समस्त विश्व का पर्व है। भारतीय संस्कृति में इसे मंगलमय ज्योति पर्व के रूप में मनाने की परंपरा अति प्राचीन है ।कारण भारत की पावन वसुंधरा को अपने ज्योतिर्मय व्यक्तित्व एवं लोक कल्याणकारी प्रसंगों से अप्लावित करने वाले महापुरुष जिन्होंने मनुष्य मात्र को न केवल हर्षित एवं अल्हादित किया अपितु उन्हें शाश्वत सुख की अनुभूति करने का गौरव प्रदान किया ऊनके जीवन प्रसंगो से यह पर्व जुडा हुआ है।
दीपावली पर्व यह सामाजिक और धार्मिकता से ओतप्रोत पर्व है।दीपावली ज्ञान रूपी प्रकाश ,राष्ट्रीय एकता एवं प्राणी मात्र के प्रति सद्भावना को प्रकट करती है। जैसे दीपक में रूई और तेल अपने वर्चस्व को मिटाकर दूसरों को प्रकाशित करता है ,इसी भाती मनुष्य ने भी अपने गुणो और स्नेह के माध्यम से दूसरों के प्रति हितकारी होना चाहिए। स्वयं जलकर दूसरों को प्रेम का, सद्भावना का प्रकाश देना चाहिए। भ महावीर के सत्य,अहिंसा एवं चरित्र निर्माण के जो उपदेश है उन्हें जीवन में धारण करने चाहिए।इस अवसर पर हमें अपने विकारों को त्याग कर मन को शुद्ध बनाना है तथा ज्ञानोपयोग का दीपक प्रकाशित करना है।हमें अंदर से क्रोध ,मान ,माया, लोभ को निकालकर ज्ञान रूपी दीपक का प्रकाश करना है ।यदि हम ऐसा करते हैं तो दीपावली मनाना सार्थक होगा।
दीपावली हमें संकेत देती हे कि अंधेरे से उजाले की ओर जाए।जलते दीपक ईस बात का संदेश देते हैं कि वे स्वयं जलकर दूसरों को प्रेम का, सद्भावना प्रकाश दे।जैसे दीपक तेल और बाती के संयोग से अंधेरा दूर करने और प्रकाश फैलाने में अपना जीवन लगा देता है इसी प्रकार हमारे जीवन में भी तप रूपी तेल जले, दया बाती का पर्याय हो और शिक्षा क्षमा का प्रतीक बने ।राग जलाकर ज्ञान का दीपक जलाएं। वास्तव में दिया गुरु के समान है जो हमें बहुत कुछ सीखाता है दिया न हमें केवल प्रकाश देता है बल्कि अंधकार से लड़ने का साहस भी देता है ।वह हमें परोपकार सिखलाता है। वह न केवल स्वयं जलता है बल्कि दूसरों के घर आंगन को भी रोशन कर देता है ।दीया आशा का प्रतीक है। नूतन चेतना एवं नवीन कार्य करने की प्रेरणा देता है। वह भय एवं भ्रम को दूर करता है।
दीया पात्र, बाती और तेल से मिलकर बना है। तीनों एक दूसरे से संलग्न है। अलग रहकर किसी की अपनी कोई पहचान नहीं है। जिस प्रकार सारे दीपक एक साथ जलते हैं ,कोई दीप एक दूसरे का भेदभाव नहीं करता ऊसी प्रकार हमें भी किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए। दीप का कार्य है जलना है ऊसी प्रकार मनुष्य का कार्य है सत्कर्म करना। हम अनुभव कर रहे करते हैं कि चारों ओर भय, प्रतिस्पर्धा और व्यक्तिगत स्वार्थ की अंधेरी दीवारें है, भ्रष्टाचार, हिंसा, सांप्रदायिकता, आतंकवाद का कोहरा मचा हुआ है। इन सभी से मुक्ति पाने के लिए हमें स्वयं को दीपक बनकर सहिष्णुताकी, सकारात्मकता की रोशनी बढ़ाने होगी आज हमारे दीपक में ज्ञान रूपी तेल की कमी है इसलिए आंधियां हम पर प्रभाव डालती रही है। हम विपरीत दिशा में बढ़ रहे है। ईन आंधियों में अस्तित्व बनाए रखने के लिए ज्ञान रूपी तेल और सकारात्मक ऊर्जा की बड़ी आवश्यकता है। हमें अपने आत्म चिंतन को इतना बढ़ाना है कि बाहरी वस्तुओं की आवश्यकता ही न हो। भगवान महावीर ने आत्मदिप प्रज्वलित कर कर अपने अंतर की खोज की और उसमें से सत्य, अहिंसा, त्याग जैसे अनमोल रत्न दिए, जियो और जिने दो, परस्परोप ग्रहो जीवाणाम नाम, अहिंसा परमो धर्मो, मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान है ऐसे संदेश विश्व को दिए। यही हमें सत्कार्य कराते हुए मोक्ष के द्वार पर ले जाएंगे।
प्रत्येक समुदाय में इस पर्व को मनाने के पीछे पवित्र उद्देश्य छिपा हुआ है। सभी इस पर्व को आनंद का ,सुख शांति का, समृद्धि का प्रतीक मानते हैं। घर शुद्धि, शरीर शुद्धि ,एवं मन शुद्धि जैसे पवित्र उद्देश्य इस पर्व के मनाने में है ।परंतु गंगा उल्टी बहने लगी है। इस महान अहिंसक पर्व पर आतिशबाजी के प्रयोग से हिंसा का तांडव हो रहा है। असंख्य सूक्ष्म एके न्द्रीयजीव से लेकर सैनी पंचेन्र्दीय जीवो की हत्या हो रही है ।हम दीपावली बडे हर्षोल्लास से मौज मस्ती से मनाते है परंतु हमारे पड़ोस में एक ऐसा वर्ग भी है जिनको यह पता भी नहीं चलता कि दीपावली कब आती है , कब जाती है। उनको ना दीपावली की रोशनी का एहसास होता है न दिए की लौ का। उनकी दोपहर भुखे पेट कटती है और रात अंधेरे मे। ना उन्हें खाने को मीठा मिलता है,न त्यौहार के कपड़े मिलते हैं। इनमें से कुछ तो प्रकृति के मार से तो, कुछ अपनो की मार से मरे हुए हैं ।अतः हमारा कर्तव्य बनता है कि उन भाई-बहनों के पास जाकर ऊनके घरो मे दीपको का प्रकाश करे। ऊनके भुखे,प्यासे बच्चो की भूख को मिटाए । जो ठंड से सीसक रहे है, दुखी है उनकी झोपड़ी में जाकर स्नेह का, प्रेम का एक छोटा सा भी दीपक प्रज्वलित किया तो दीपावली मनाना सार्थक होगा। क्योंकि दीपावली का दीपक हमें संकेत दिलाता है कि स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश मान करे ।ऊपर उठती हुई लौ यह संदेश देती है कि सदा ऊंचे विचार रखें, सदा ऊपर की ओर का ही चिंतन करें और समझा रही है की अपनी ज्ञान ज्योति को जागृत करे।आत्मा में दया धर्म का दीप आलोकित करें और दानवता को समाप्त कर अहिंसा ,सेवा और त्याग के विकास पद पर अग्रसर होकर करुणा ,दया से मानवता को वरण कर भगवान बनने की ओर बढे। जीवन को धर्म से प्रकाशित कर संपूर्ण देश ,राष्ट्र ,समाज व धर्म में अहिंसा धर्म का दीप जलाने का प्रयास कर दीप पर्व सर्वत्र आलोकमयी करें ।
अतः इस पावन पर्व पर हम सभी संकल्प ले कि इस कलयुग में मानव को मानवता सिखाएंगे और स्वयं को ऊर्जावान दीपक बनाएंगे। प्राणीमात्र के प्रति करुणा एवं दया को जगा कर अपने जीवन को धर्म से प्रकाशित कर संपूर्ण देश ,राष्ट्र एवं समाज में अहिंसा धर्म का दीप जलाने का प्रयास करेंगे और सच्चे अर्थो मे दीपावली को सार्थक बनाएंगे ।सभी को दीपावली अंतःकरण से हार्दिक शुभ कामनाए।
मा संपादक महोदय, सा जयजिनेद्र।,दीपावली निमित्त यह आलेख प्रकाशित कर उपकृत करे ।धन्यवाद।
स्रोत- जैन गजट, 11 अक्टूबर, 2024 पर: https://jaingazette.com/diye-se-mile-jeevan-jine/

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